“Writing is easy, you just have to sit before a typewriter, and BLEED.”
कई लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं, “ये राईटर बनने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ क्या होती है?” तो मैं इस सवाल का जवाब एक सिंपल सी लाइन से देता हूँ - “राईटर बनने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ है, लिखना।”
पर ये जवाब ज़्यादातर लोगों को समझ नहीं आता। और क्यूँकि आजकल लोग सब कुछ स्लोगंस से समझते हैं, इसीलिए मैंने भी एक स्लोगन लिखा - "लिखो, ख़ूब लिखो। लिखते रहो।"
तो इस स्लोगन के बाद समझते हैं की लिखाई आख़िर की कैसे जाती है। आपने कई लोगों के मुँह से सुना होगा की लेखक को लिखने के लिए एक बहुत ज़रूरी चीज़ चाहिए होती है, जिसे INSPIRATION कहते हैं।
ये बात शत प्रतिशत सत्य है। हर इंसान को राईटर बनने के लिए inspiration चाहिए होती है। मगर दुर्भाग्यवश ये inspiration नाम की चिड़िया घर बैठे नहीं आती है। हॉकी, भाले, लाठी वग़ैरह लेकर उसे ढूँढने निकलना पड़ता है। जैसे शिकार पर जाते हैं ना, एकदम वैसे ही।
राईटर बनने के लिए आदत डालनी पड़ती है।
लिखने की आदत। इसीलिए, लिखो, ख़ूब लिखो, लिखते रहो।
लिखना बंद नहीं करना है।
लिखो, खूब लिखो, लिखते रहो, और लिख लिख कर ख़त्म करो।
चीज़ों को अधूरी मत छोड़ो। चाहें कितनी भी बुरी क्यूँ ना लग रही हों। एक लेखक होने के नाते, आप में ये बूता होना चाहिए कि आप अपनी लिखी हुई कहानी को देख कर बोल सको, “भाई! बहुत टट्टी लिखी है।”
लिखना बच्चे पैदा करने जैसा होता है। लायक़ हो या नालायक, अपना नाम देना हो पड़ता है। पता है क्यूँ?
क्यूँकि एक बदसूरत औलाद, बेऔलाद होने से ज़्यादा अच्छी होती है। इसी तरह, एक बकवास कहानी, एक बिन लिखी कहानी से कहीं बेहतर होती है।
लोगों के तानों से डरकर लिखना छोड़ना नहीं है। याद रखो, एक राईटर के पास गैंडे की चमड़ी और कॉक्रोच जैसे ढिठाई होनी चाहिए। कॉक्रोच का सर काट दो, फिर भी वो ज़िंदा रहता है। एक राईटर भी ऐसा ही होना चाहिए, कितनी भी बेइज़्ज़ती कर लो, बुराई कर लो, लिखना बंद नहीं होना चाहिए।
बेइज़्ज़ती की आदत डाल लो। क्यूँकि बेइज़्ज़ती से पैदा होता है डर, और डर से पैदा होता है संघर्ष याने conflict। और conflict से बनता है — ड्रामा!
आप कुछ लिखो, और उसे दुनिया के बीच फेंक दो। बोलो, “लो पढ़ो, और करो कॉमेंट। और मेरे काम के साथ साथ मुझ पर भी कॉमेंट करो। मुझे भी पढ़ो।”
चीज़ों को अधूरी मत छोड़ो। चाहें कितनी भी बुरी क्यूँ ना लग रही हों। एक लेखक होने के नाते, आप में ये बूता होना चाहिए कि आप अपनी लिखी हुई कहानी को देख कर बोल सको, “भाई! बहुत टट्टी लिखी है।”
लिखना बच्चे पैदा करने जैसा होता है। लायक़ हो या नालायक, अपना नाम देना हो पड़ता है। पता है क्यूँ?
क्यूँकि एक बदसूरत औलाद, बेऔलाद होने से ज़्यादा अच्छी होती है। इसी तरह, एक बकवास कहानी, एक बिन लिखी कहानी से कहीं बेहतर होती है।
लोगों के तानों से डरकर लिखना छोड़ना नहीं है। याद रखो, एक राईटर के पास गैंडे की चमड़ी और कॉक्रोच जैसे ढिठाई होनी चाहिए। कॉक्रोच का सर काट दो, फिर भी वो ज़िंदा रहता है। एक राईटर भी ऐसा ही होना चाहिए, कितनी भी बेइज़्ज़ती कर लो, बुराई कर लो, लिखना बंद नहीं होना चाहिए।
बेइज़्ज़ती की आदत डाल लो। क्यूँकि बेइज़्ज़ती से पैदा होता है डर, और डर से पैदा होता है संघर्ष याने conflict। और conflict से बनता है — ड्रामा!
आप कुछ लिखो, और उसे दुनिया के बीच फेंक दो। बोलो, “लो पढ़ो, और करो कॉमेंट। और मेरे काम के साथ साथ मुझ पर भी कॉमेंट करो। मुझे भी पढ़ो।”
और ये रोज़ करो। हर दिन करो।
लिखो, खूब लिखो, लिखते रहो।
तो ये तो हो गया की राईटर के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ क्या होती है। लेकिन एक सवाल और है, जो मुझे काफ़ी परेशान करता था। जब मैं अपने ससुर जी से पहली बार मिलने गया था, तो उन्होंने मुझसे पूछा था, "बाक़ी सब तो ठीक है, पर ये राईटर क्यूँ बने?" ससुर जी ने ३ सेकंड में existential crisis दे दी थी। तो उस सवाल का जवाब तो मैं उन्हें नहीं दे पाया, पर मैंने सोचा बहुत। और बहुत सोच विचार करके भी कुछ समझ नहीं आया। बड़ी अजीब हालत हो गयी थी।
फिर बीवी ने भी एक दिन बोला दिया, “शादी से पहले एक regular नौकरी कर लो यार।” - कर ली। छोड़ दी राइटिंग। पर नौकरी ज़्यादा दिन नहीं चली। दूसरी करी, वो भी नहीं चली।एक और ट्राई करी, same to same.
फिर एक दिन दारू पीकर रोते हुए - आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई।
समझ आया की मैं राईटर इसलिए बना क्यूँकि मैं और कुछ बन ही नहीं सकता था। आप राईटर दूसरों को कुछ समझाने या प्रूव करने के लिए नहीं बनते हो। आप राईटर बनते हो, क्यूँकि इसके अलावा और कोई रास्ता ही नहीं होता है आपके पास। Default Setting ही ख़राब होती है आपकी। पर सवाल फिर वही का वही है --
“क्यूँ ?”
तो इसका जवाब ये है, की जैसे ही आप कुछ लिखते हो, पूरा करते हैं, चाहे वो एक कहानी हो, एक नज़्म, शेर, नॉवल, या एक छोटा सा छंद ही सही, अचानक एक ख़ुशी की बाढ़ आपको बहा कर ले जाती है। आप आईने में अपने आप से आँखें मिला पाते हो। रात को सोने से पहले ख़ुद से ये बोल पाते हो, “आज मैंने एक तीर मारा है।” आपकी ज़िंदगी का एक छोटा सा ही सही, पर एक मक़सद मुकम्मल हो जाता है। लिखने से आपको ख़ुशी मिलती है।
इसी ख़ुशी के चक्कर में, हम घनचक्कर बनते हैं।
इसीलिए शायद हम राईटर बनते हैं।
इसीलिए अगर राइटर बनना है तो,
लिखो, खूब लिखो, लिखते रहो।
लेकिन इस के बाद एक परेशानी और आपके सामने आएगी।
लोग शायद कहें, "राइटर तो तुम बन गए, पर अच्छे नहीं बने।"
उनकी ऐसी की तैसी!
लोग failed और successful राईटर के benchmark बनाते रहते हैं। कहते हैं कि बहुत complicated होता है ये अंतर कर पाना। जबकि सच ये है, की ये बिलकुल भी complicated नहीं हैं, बल्कि बहुत simple होता है। हमेशा एक चीज़ याद रखिएगा -
एक घटिया राईटर, failed राईटर नहीं होता।
एक ना बिकने वाला, बेरोज़गार राईटर failed राईटर नहीं होता।
Failed राईटर वो होता है, जो लिखना छोड़ देता है। जो हार मान चुका होता है।
तो साथियों, हार मत मानना। कोई आपसे कुछ भी कहे, आप बस एक काम करो -
लिखो, खूब लिखो, लिखते रहो।
ek kaam kar
जवाब देंहटाएंaur likh
tu aur likh
ki Tod de ungliyaan
fod le sar
rang de kagaz lahoo se
syahi samajh aati kise hai
tu aur likh
इसी ख़्याल पे लिखी थी कभी
बहुत खूब!