शिक्षक दिवस वाली पोस्ट

छायाचित्र: भाग्य प्रकाश (द हिन्दू से साभार)


आप पोस्ट के शीर्षक से गच्चा खाकर यहाँ  तो गये हैं पर मैं पहले ही बता दूं कि इस वाकये का शिक्षक दिवस से कोई लेना देना नहीं है। ये पोस्ट शिक्षक दिवस वाले दिन लिखी गयी थी (पब्लिश नहीं) बस केवल इसीलिये इसका शीर्षक ऐसा है। तो चलिये किस्सा सुनाते हैं। बात तब की है जब हम पाँचवीं क्लास में थे और स्कूल के साथ आगरे के टूर पर गये थे।
ताज महल, फतहपुर सीकरी और अन्त में सिकन्दरा देखने के बाद, अब हम घर की और निकले, सूरज डूब चुका था और हमारी ‘सोलंकी टूर ऐण्ड ट्रैवल्स’ की बस अंधेरी सडक पर दौड़ी जा रही थी।

हमने अपनी मैडम से बोला, “मैम, टॉइलेट आ रहा है।”
मैम: “पागल लड़के, ये कोई टाइम है टॉइलेट आने का? अभी थोड़ी देर बाद किसी ढाबे पर खाना खाने के लिये रुकेंगे, तब कर लेना।”

हम चुपचाप पीछे जाकर अपनी सीट पर बैठ गये। पर हमारा गॉल ब्लैडर बात मानने को राज़ी ही न था। थोड़ी देर बाद, हम एक दूसरी मैडम के पास गये और अपनी समस्या बताई। मैडम ने ऐसे रिएक्ट करा जैसे कोई ब्रेकिंग न्यूज़ हो, “क्या? टॉइलेट  रहा है? अभी?” 

ये सुनकर वो पहली वाली मैडम भी गुस्सा हो गयीं, “अरे! कैसा जाहिल लड़का है ये। अभी पाँच मिनट पहले इसको बोला कि अभी टॉइलेट नहीं कर सकते, पर इसको बात ही समझ में नहीं आती।”

ड्राइवर जो ये सब सुन रहा था, उसने पूछा, “मैडम जी, बस रोक दूं क्या?”
मैडम: “नहीं भैया, वैसे ही लेट हो रहे हैं। ऐसे हर किसी के जँगल पानी के लिये रुके तो पता नहीं कब पहुंचेंगे।”

बस चलती रही और हम बारिश में भीगते पिल्ले जैसा मुँह बनाये मैडम की सीट के पास खड़े रहे। तभी ड्राइवर के हैल्पर ने लपक कर बोला, “अरे मैं अभी कराये देता हूं।”

“मैं अभी कराये देता हूं ??” हैल्पर के शब्द मेरे सर में घूम रहे थे, “ये कैसे करायेगा? करनी तो मुझे है।” हम इतना सोच ही रहे थे कि तभी उस हैल्पर ने हमें पीछे आकर उठाया और बस के गेट पर ले गया। चलती बस का गेट खोलकर उसने हमें सबसे आख़िरी सीढ़ी पर खड़ा किया, और पीछे से हमारी दोनों बगलों से हमें पकड़ कर बोला, “चल लौण्डे, कर ले।”

हमने भी तुरंत अपनी स्कूल पैण्ट की चेन खोली और टॉइलेट कर लिया। सारा टॉइलेट चलती बस की साईड में जाकर लगा। मैडम खिड़की से सर निकाल कर बोलीं, “अरे गँवार लड़के, तमीज़ से कर। छींटें आ रहे हैं!” हमने एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह अपने शिश्न को दूसरी दिशा में मोड़ दिया। एक भी बूँद मैडम जी की खिड़की की तरफ ना जाने दी। सारा टॉइलेट हमने अपने जूतों और स्कूल की पैण्ट पर ले लिया।

“अबे लौण्डे, तूने तो सारा गेट गीला कर दिया।” ऐसा बोलकर हैल्पर ने हमें उठाकर वापस बस के अंदर रख दिया। हम अपनी चेन बंद ही कर रहे थे कि मैडम ने बोला, “तमीज़ मत सीख लेना। हाथ धोये तुमने?”

हमने अपनी पानी की बोतल से हाथ धोये और वापस अपनी सीट पर जाकर बैठ गये।

थोड़ी देर बाद मैडम जी को टॉइलेट आयी। बस रोकी गयी और सबने उतर कर जँगल में टॉइलेट की।
हम ढाबे पर खाना खाने के लिये नहीं रुके।



शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।