कॉमिक चोर - 'मेरे हाथ मेरे हथियार' #1



दो कॉमिक चोरों की पहली चोरी की कहानी जिसके बाद कॉमिक चोरी करना उनका जुनून बन गया !



"अबे यार ये तो बड़ी सही है यार !!!", अँकित (बदला हुआ नाम) कुछ ज़्यादा ही खुश़ था।

उसकी खुश़ी उसके उछलने और कॉमिक को बार बार झटकने से ज़ाहिर हो रही थी। स्वप्निल (बदला हुआ नाम) की हालत भी कुछ कम नहीं थी। आज दोनों की खुश़ी परव़ान चढ़ी हुई थी। और हो भी क्यों ना, आख़िर डोगा की 'मेरे हाथ मेरे हथियार' कॉमिक बुक स्टोर पर आने के सिर्फ़ 2 घण्टे बाद ही उनके पास जो आ गयी थी। इस कॉमिक का दोनों तभी से इंतज़ार कर रहे थे, जब से उन्होने इसका AD पिछली सैट की एक कॉमिक में देखा था। वो तो इन दोनों के पास उस मनोज की तरह पैसे नहीं थे, वर्ना मज़ाल है कि डोगा की नई कॉमिक आये और इन दोनों से पहले कोई पढ़ ले? पर आखिर किया क्या जा सकता था, मनोज तो शहर के सबसे बड़े आढ़ती का बेटा था तो पैसा भी उसके पास अँधाधुँध था। और ये दोनों बेचारे तो अपने ना के बराबर मिलने वाले जेबखर्च को मिलाकर कॉमिक किराये पर लाकर पढ़ते थे, दोनों के घरों की माली हालत जो अच्छी नहीं थी। कॉमिक भी छुपा कर पढ़नी पड़तीं थीं क्योंकि घरवालों की सख़्त हिदायत थी कि पैसे ना बिगाड़े जायें और उसके ऊपर कॉमिक जैसी 'बेकार की चीज़' पर पैसे लगाना मतलब अँकित के मम्मी के हाथ से पिटाई। पर छुपछुपा कर ठण्ड में छत पर कॉमिक पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है। और वैसे भी इस कॉमिक में डोगा अपने सारे राज़ अपने फैंस के लिये खोलने वाला था। उसके मार्शल आर्ट्स के सारे दाँव पेच जानने के लिये अँकित और स्वप्निल (दोनों के ही बदले हुए नाम) मरे जा रहे थे। दोनों को मार्शल आर्ट सीखने का मन था पर घरवालों से इजाज़त नहीं मिलती थी, सो दोनों शहर के एक कराटे क्लब की प्रैक्टिस के वक्त कॉलेज के मैदान में बैठ जाते और जितना हो सके उतनी पास से उन्हें देखने की कोशिश करते। क्लबवालों के जाने के बाद दोनों आपस में अपनी याद्दाश्त और समझ के हिसाब से खुद अभ्यास करते। साले अपने आप को एकलव्य समझते थे।

खैर अब उन्हें चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्योंकि इस बार 'खुद' डोगा उन्हें अपनी मार्शल आर्ट के दाँव पेच के वो राज़ उन्हें सिखाने वाला था जो कि उसने हल्दी चाचा से सीखे थे। उस कॉमिक में वो सब था जो उनकी सारी कमियाँ पूरी करने वाला था और वो कॉमिक अब उनके हाथों में थी। पहले झगड़ा इस बात पर हुआ कि कॉमिक को पहले कौन पढ़ेगा पर कोई नतीज़ा ना निकलने पर ये तय हुआ कि दोनों एक साथ ही कॉमिक पढ़ेंगे। और अब दोनों अँकित (बदला हुआ नाम) के घर की छत पर पहुँच चुके थे। अँकित (बदला हुआ नाम) के घर की छत इसलिये चुनी गयी थी क्योंकि स्वप्निल (बदला हुआ नाम) के घर की छत मज़बूत नहीं थी और उसपर सिर्फ़ भागने से ही नीचे कमरे में मिट्टी झड़ती थी। इसीलिये छत के नीचे आने का खतरा था। इसलिये डोगा से मार्शल आर्ट्स के गुर सीखना चाहें जितना भी ज़रूरी क्यों ना हो पर घर की छत की कीमत पर वो सौदा फ़ायदेमँद नहीं था, और वैसे भी स्वप्निल (बदला हुआ नाम) के पापा का हाथ काफ़ी जोर से पड़ता था और ये बात अँकित और स्वप्निल (दोनों के ही बदले हुए नाम) अच्छी तरह से जानते थे।

तो कॉमिक की अपनी आँखों से पूजा-अर्चना करने के बाद उसे छत पर ले जाया गया और अभ्यास शुरू किया गया। दोनों ने कॉमिक में दिखायी गयी सारी मुद्रायें और दाँव अच्छी तरह से अज़मा लिये और एक दूसरे पर कई बार लगा कर देख भी लिये। अँकित (बदला हुआ नाम) की शिकायत थी कि स्वप्निल (बदला हुआ नाम) कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से मार रहा है जबकि अभ्यास के वक्त इतनी ज़ोर से नहीं मारना चाहिये और यही बात डोगा ने अपनी इस कॉमिक में भी कही थी। चलो छोड़ो, जो हुआ सा हुआ, अब दोनों मॉडर्न एकलव्य अपने गुरु डोगाचार्य से सब कुछ सीख चुके थे। पर ये सब याद रखना इतना आसान ना था। आखिर चौथी क्लास का कोर्स होता ही इतना मुश्किल है कि और कोई चीज़ साली याद भी कैसे रह सकती है। दोनों ने इस मुद्दे पर काफ़ी विचार विमर्श किया और नतीज़ा यह निकला कि ये कॉमिक उनके पास हमेशा रहनी चाहिये।

पर परेशानी ये थी कि ये कॉमिक 8 रुपये की थी।
इतने रुपये एक साथ इन दोनों गधों ने कभी देखे भी नहीं थे (हाँ जानता हूंँ कि कुछ ज़्यादा ही हो गया है पर क्या कर लोगे?)।
सो ये कॉमिक खरीदना उनके बस के बाहर था।
दोनों ने काफ़ी तरीके सोचे पर सिर्फ़ एक ही तरीका इस वक्त वाजिब बैठता था, और वो यही था कि ये दोनों इस कॉमिक को चुरा लें।

ये idea स्वप्निल (बदला हुआ नाम) के दिमाग का था और इसीलिये अँकित (बदला हुआ नाम) इससे डर रहा था।

"साले तूने पहले भी ऐसे ऊल जलूल तरकीबें बतायी हैं।", अँकित (बदला हुआ नाम) थोड़ा डरा हुआ था।
"पर बेटा काम भी वही ऊल जलूल तरकीबें आयीं थीं।", स्वप्निल (बदला हुआ नाम) की बात में दम था, दोनों इन्हीं तिकड़मों का सहारा लेकर हमेशा मुसीबतों से निकलते थे।

"पर मैं ये काम नहीं करने वाला, साले दुकान वाले को पता पड़ गया तो हमें कॉमिक देना बँद कर देगा। और वैसे भी शहर में बस एक वही दुकान वाला है जो हमें बिना गारण्टी के कॉमिक देता है। ना भैया, मैं उस दुकान वाले से पँगा नहीं लेने वाला।", अँकित (बदला हुआ नाम) अपनी बात पर अड़ा हुआ था।
पर स्वप्निल (बदला हुआ नाम) भी पीछे नहीं था, उसने अपने हाथ को अँकित (बदला हुआ नाम) की तरफ़ करके कहा, "अबे ओ! वो गारण्टी तेरी नहीं मेरी है, भूल गया? मेरी मम्मी ने उससे कहा था कि मुझे कॉमिक दे दिया करे। साले तेरी मम्मी कभी कॉमिक वाले की दुकान पर कभी गयी भी हैं? बड़ा आया गारण्टी वाला!"


"और बेटा अगर तूने इस प्लान में ना कहा तो मैं सब को बता दूँगा कि library में क्या काण्ड करा था तूने। साले अब कभी भी library नहीं जा सकते हम दोनों सिर्फ़ तेरी वजह से।", इस वार स्वप्निल (बदला हुआ नाम) पूरे जोश में था।

अँकित (बदला हुआ नाम) पर अब कोई चारा नहीं था, वाकई में उसने library में जो करा था वो किसी को भी पता नहीं चलने दे सकता था। बकरे की माँ क्या ना करती, सो अँकित (बदला हुआ नाम) इस प्लान में साथ देने को तैयार हो गया और दोनों कॉमिक चुराने के प्लान पर काम करने बैठ गये।

क्रमश: ...

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