हम में से ऐसे कितने लोग हैं जिनके यहाँ कोई कामवाली या अँग्रेज़ी में 'maid' कोई भी काम करने आती है, चाहे सफाई, बर्तन, कपड़े या कुछ भी। और उनमें से कितनी ही कामवाली ऐसी होती हैं जिनके कि बच्चे भी उनके साथ आते हैं। अब सवाल ये है कि हम उन बच्चों के साथ कैसे पेश आते हैं।
कुछ लोग उन बच्चों को पसँद नहीं करते क्योंकि वो बच्चे घर के काम-काज़ में खलल पैदा करते हैं सो वो अपनी कामवाली से कहते हैं कि उन्हें घर पर या कहीं भी और छोड़ कर आया करे पर काम पर अपने साथ ना लाया करे।
कुछ लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता, उनके हिसाब से काम ज़रूरी है और उसके अलावा एक गरीब औरत अपने छोटे से बच्चे को कहाँ छोड़ेगी? सो वे लोग बच्चों से नहीं कतराते जब तक कि कामवाली अपना काम ढँग से कर रही है।
और ज़्यादातर लोग उस तरह के होते हैं जो कि कामवाली के बच्चों के साथ प्यार से पेश आते हैं, उनको पुचकारते-दुलारते हैं, घर में जो भी कुछ खाने को पड़ा या बना होता है उन्हें ज़रूर देते हैं, अपने बच्चों और उनके पसँदीदा खिलौनों के साथ उन्हें खेलने देते हैं।
मेरे ख्याल से ये ज़्यादातर लोग अपने आप को काफी अच्छा इँसान और खुले विचारों वाला समझते हैं पर एक बात भूल जाते हैं कि बच्चे को प्यार के अलावा एक और चीज़ की सख्त ज़रूरत होती है; और वो है पढ़ाई।
आपकी कामवाली का बच्चा अगर स्कूल जाने लायक है और वो फिर भी अपनी माँ के साथ घर घर भटकता फिरता है और अगर आप उसे पुचकार-दुलार रहे हैं तो ये गलत है। उसे आपके घर नहीं, स्कूल में होना चाहिये।
भारतीय सँविधान के अनुसार मॉलिक शिक्षा हर बच्चे का हक है और सरकारी स्कूलों में यह फ्री भी है, इसका मतलब बच्चे या उसके माँ बाप को उसके स्कूल के लिये एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।
तो अगली बार अगर आपकी कामवाली का बच्चा जो कि स्कूल जाने लायक है, आपके घर आता है, तो उसे केवल प्यार न करें... बल्कि पक्का करें कि वह स्कूल जा रहा/रही है।
शिक्षा हर बच्चे का जन्मसिद्द अधिकार है और वो उसे मिलनी चाहिये। तो आगे आइये और मदद कीजिये, ताकि हम सब मिलकर एक शिक्षित भारत का निर्माण कर सकें।
पर हाँ उन्हें दुलार करना ना भूलें... वह भी उनका हक है।
कुछ लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता, उनके हिसाब से काम ज़रूरी है और उसके अलावा एक गरीब औरत अपने छोटे से बच्चे को कहाँ छोड़ेगी? सो वे लोग बच्चों से नहीं कतराते जब तक कि कामवाली अपना काम ढँग से कर रही है।
और ज़्यादातर लोग उस तरह के होते हैं जो कि कामवाली के बच्चों के साथ प्यार से पेश आते हैं, उनको पुचकारते-दुलारते हैं, घर में जो भी कुछ खाने को पड़ा या बना होता है उन्हें ज़रूर देते हैं, अपने बच्चों और उनके पसँदीदा खिलौनों के साथ उन्हें खेलने देते हैं।
मेरे ख्याल से ये ज़्यादातर लोग अपने आप को काफी अच्छा इँसान और खुले विचारों वाला समझते हैं पर एक बात भूल जाते हैं कि बच्चे को प्यार के अलावा एक और चीज़ की सख्त ज़रूरत होती है; और वो है पढ़ाई।
आपकी कामवाली का बच्चा अगर स्कूल जाने लायक है और वो फिर भी अपनी माँ के साथ घर घर भटकता फिरता है और अगर आप उसे पुचकार-दुलार रहे हैं तो ये गलत है। उसे आपके घर नहीं, स्कूल में होना चाहिये।
भारतीय सँविधान के अनुसार मॉलिक शिक्षा हर बच्चे का हक है और सरकारी स्कूलों में यह फ्री भी है, इसका मतलब बच्चे या उसके माँ बाप को उसके स्कूल के लिये एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा।
तो अगली बार अगर आपकी कामवाली का बच्चा जो कि स्कूल जाने लायक है, आपके घर आता है, तो उसे केवल प्यार न करें... बल्कि पक्का करें कि वह स्कूल जा रहा/रही है।
शिक्षा हर बच्चे का जन्मसिद्द अधिकार है और वो उसे मिलनी चाहिये। तो आगे आइये और मदद कीजिये, ताकि हम सब मिलकर एक शिक्षित भारत का निर्माण कर सकें।
पर हाँ उन्हें दुलार करना ना भूलें... वह भी उनका हक है।
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