बिहारियों को गुस्सा क्यों आता है???

चेतावनी -
प्रस्तुत प्रसँग कुछ लोगों (जिनमें सभी बिहारी होंगे) को अनुचित, असभ्य, अरुचिकर तथा बहुत बुरा लग सकता है। पर मेरा मानना है कि लगता है तो लगे, मेरे ठेंगे से !!! मेरे साथ हुआ है तो बतला रहा हूँ।



"ये साले सारे के सारे बिहारी सिवाय मुसीबत के कुछ नहीं हैं... इनमें और ढोरों में अगर कोई अँतर है तो सिर्फ ये कि ढोर बिहारी भाषा नहीं बोलते।"

ऐसा मैं नहीं, बल्कि मेरे एक मित्र का कहना है। मुझे तो मेरे पिता जी ने मुझे मरने से पहले हमेशा एक ही बात कही;
"चाहे हम किसी और को भले ही कुछ भी बुला लें, चाहें उन्हें किसी भी खाके में बाँट दें, पर हम सब हमेशा एक जैसे ही रहेंगे - 'जानवर के जानवर'"

अभी मैं पिछले एक हफ्ते मैं NIFT के कुछ लड़कों के साथ रहा था जिनमें से ज़्यादातर बिहारी थे। वो लोग मिलकर एक ड्रैस बना रहे थे, जिसका कि वीडियो शूट करना था, इस कारण मेरा ज़्यादातर वक्त बिहारियों के बीच ही बीतता था क्योंकि उनका लीडर बिहारी था। अब मुझे फर्क नहीं पड़ता कि कौन क्या है कैसा है, जब तक कि वो मेरे साथ अच्छे से पेश आ रहा है (जो कि वो आया भी) हाँलाकि, कभी कभी वो बाकी सब पर ऐसे बरस पड़ता था जैसे हम साले उसके बाप के खरीदे हुए गुलाम हों। ये बात मुझे बहुत अजीब लगती थी और मैंने उसे एक-दो बार बीच में इस वजह से सुना भी दिया था, जिसकी वजह से उसका चेहरा उतर जाता था।

अब बात शनिवार की है, शनिवार की सुबह मैं अपने घर से नहाने के बाद उसके यहाँ आया और उसके कमरे पर बाकी लड़कों के साथ बैठा रहा, जबकि उस दिन मेरे पास करने को कुछ नहीं था.. पर वो चाहता था कि मैं उसका काम पूरा होने तक उसके रूम पर ही रहूँ ताकि उसे जब भी मेरी ज़रूरत हो मैं वहाँ पर मौजूद हूँ। तो मैंने पूरा शनिवार का दिन उसके रूम पर बिताया... उसके बाद रात को तो मुझे वहाँ रुकना ही था क्योंकि इतवार की सुबह तड़के ही हमें शूट पर निकलना था। पर उस भाई ने मुझे शनिवार की रात को सोने ही नहीं दिया, क्योंकि उसका कहना था कि उसे अपने design और concept के बारे में कुछ बात करनी है जो कि हमने आज तक नहीं की।

तो पूरी रात फ्री-फण्ड का जगरता करने के बाद हम सुबह सुबह शूट पर निकले, वो भाई मुझे और एक जूनियर को छोड़कर सुबह 7:30 बजे ही वापस रूम पर निकल लिया... सो मैं और वो दूसरा लड़का सुबह 11 बजे तक शूट खत्म करके वापस चल दिये। नींद से तो मेरी हालत वैसे ही खराब थी, उसके ऊपर गर्मी की वजह से मैं मरने के बिलकुल करीब पहुँच गया था और भूख ने तो पेट में धमाचौकड़ी मचा ही रखी थी। सो मैं कुतुब मीनार से ग्रीन पार्क पहुंच कर उस जूनियर को वहाँ छोड़ा और वापस आज़ादपुर अपने घर आ गया।

1 बजे करीब घर पहुँचा तो घर पहुँचने के थोड़े ही देर बाद मुझे ना चाहते हुए भी नींद आ गयी। अचानक हड़बड़ाहट में आँख खुली तो दोपहर के 2:30 बज रहे थे, मुझे 3 बजे का शूट का टाइम दिया गया था तो मैंने सुबह सप्लायी वाले को फोन करके 12 बजे ही लाईट्स वगैरह पहुँचाने को बोल दिया था। मैंने अपना फोन चैक किया तो, 3 missed calls थे। जिनमें से 2 उस बिहारी लीडर भाई के थे। मैं तुरँत नहाके सीधा उसके रूम पर पहुँचा और देखा कि अभी सब काम अधूरा है और शूट का कोई सीन ही नहीं है। भगवान कसम बड़ा दिमाग खराब हुआ।

पूरा कमरे का कबाड़खाना बना हुआ था, कहीं पैर रखने की जगह नहीं थी, अब एक तो मुझे ऐसे माहौल से वैसे ही कोफ्त होती है उसके ऊपर से नींद और भूख न मेरी मट्टी खराब कर रखी थी। अँदर वर्कशॉप में पहुँचा तो देखा कि काम अभी भी अधूरा था... तो शूट होने का कोई मतलब ही नहीं था। मैं अपना दिमाग खराब कर ही रहा था कि एक खाली कोने में मेरी नज़र गयी। मैंने कुछ नहीं सोचा और सीधा जाकर उस कोने में बैठ गया, और बैठे बैठे ही मुझे नींद आ गयी।

शाम को 5 बजे मुझे धक्के मार मार कर उठाया गया... उठा तो चारों तरफ शोर मचा हुआ था कि मॉडल आ रही है। अब ये बात ध्यान रखी जाये कि ये मॉडल को शनिवार को आना था ... (फ्री की मॉडल ऐसी ही होती हैं)।

शाम के 5 से रात के 8 बजे तक हम साब मॉडल का इँतजार करते रहे... और अब यहाँ से घर भागने के लिये मैं कुछ भी करने को तैयार था पर उन लड़कों मे से दो मेरी मोटरसाईकिल लेकर कहीं निकले हुये थे। अब वैसे तो मॉडल का इँतजार हो रहा था पर मॉडल को पहनायी जाने वाली ड्रैस भी तैयार नहीं थी (वो अभी भी पूरी नहीं बनी है)।

रात के 10 बजे मैं उस बिहारी लीडर भाई का लैपटॉप लेकर अपनी प्रेमिका से फेसबुक पर गप्पें हाँक रहा था। उसने पूछा कि कहाँ हूं तो मैंने लिखा कि कुछ बिहारियों के बीच हूँ। इससे आगे कुछ लिखता तभी अचानक शोर हुआ... मॉडल आ चुकी थी।
मॉडल ने आते ही अपना अल्टीमेटम दे दिया, "मैं सिर्फ 11:30 बजे तक ही हूँ, उसके बाद शूट चाहें पूरा हो ना हो.. मैं चली जाऊँगी।"

मैंने ऐसी मॉडल पहली बार देखी थी, जो खुद लेट आने के बाद भी सब को अल्टीमेटम दे रही थी, और ऐसे लोग भी पहली बार देखे जिन्होंने ऐसा अल्टीमेटम ले भी लिया। मुझे क्या... मैं तो खुश था कि चलो 11:30 पर मैं यहाँ से निकल लूँगा। सो मैंने लैपटॉप की लिड नीचे करी और कैमरा और लाईट्स सैट करवाने लगा।

11:10 पर शूट शुरू हुआ, वो आधी अधूरी ड्रैस उस मॉडल को पहनायी गयी और उसे पहनने के बाद जैसे ही मॉडल जैसे ही कैमरे के सामने खड़ी हुई, उसके शब्द थे, "OH MY GOD! I can't wear this, please get it off me."
10 मिनट उसकी ड्रैस को वापस से सैट करने में लगे। अँत में शूट शुरू हुआ जो कि करीब 20 मिनट चला। उन 20 मिनटों में मॉडल सिर्फ यही कहे जा रही थी कि उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा है और वो बेहोश होने वाली है पर हमारा बिहारी लीडर भाई उसे चुपचाप खड़े रहेन के लिये चीखे जा रहा था। 20 मिनट बाद मॉडल खुद फ्रेम से बाहर चली गयी और उसने 'Pack-Up' declare कर दिया... वो सुन कर मैं सोचने लगा कि director मैं हूँ या वो ?

खैर मैं तो खुश था कि चलो जान छूटी। मैंने तुरँत अपनी माँ और प्रेमिका को फोन करके बोला दिया कि मैं अब यहाँ से निकल रहा हूँ। भगवान कसम सच कहूँगा, मॉडल के कपड़े बदलने और लाईट वालों के लाईट वगैरह पैक करने से पहले ही मैंने कैमरा, लैंस, ट्राईपॉड, और अपना सारा सामान पैक किया और बिजली की तेजी से अपनी बाइक की चाबी लेकर बाहर पहुँच गया.. पर हमारा बिहारी भाई मेरे पास आया और मुझे बोला कि मैं अभी नहीं जा सकता। मरता क्या न करता.. अँदर जा कर बैठ गया।
मॉडल और लाईट वालों को विदा करने के बाद बिहारी भाई मेरे पास आया और बोला कि वो शूट से खुश नहीं है और अब वो पैसे देकर एक अच्छी मॉडल लायेगा जो कि सही से काम करेगी न कि इस 'फ्री वाली' कि तरह नखरे करेगी।

ये सुनकर मेरे ऊपर बिजली गिर पड़ी और मैं सोचने लगा... "एक और दिन? एक हफ्ता इस सर्कस में काफी नहीं था?" - और कछ भरोसा नहीं था कि एक दिन ही और लगेगा... क्या पता भाई पूरा concept ही change कर दे और मुझे फिर से एक और हफ्ता यहाँ बिताना पड़े। उस वक्त मैंने हाँ कर दी और झटाक से घर के लिये निकल लिया... ये सोचकर कि कहीं फिर से न रोक ले...।

रात के 2:30 बजे मैं घर पहुँचा, अब मैं किसी भी हाल में वहाँ वापस नहीं जाना चाहता था सो मैंने सोचा कि सुबह कोई बहाना बनाकर मना कर दूँगा और पीछा छुड़ा लूँगा। बहाना सोचते सोचते मैं सो गया।

रात के 3 बजे करीब मेरे फोन से मेरी नींद टूटी.... देखा तो बिहारी भाई का फोन था। मैंने बात करी तो पता पड़ा कि उसके लैपटॉप पर मेरा फेसबुक अकाउण्ट खुला रह गया था और उसने मेरी और मेरी प्रेमिका की चैट में पढ़ लिया कि मैंने उसे और उसके दोस्तों को बिहारी बुलाया था। बस फिर क्या था, वो हो गया शुरू... मैं इतनी गँदी नींद मैं था कि मुझे पूरा तो याद ही नहीं कि उसने क्या क्या कहा था पर जो याद है वो उस तरह था:
1. "हमने आपको अपने घड़वाले की तड़ह ट्ड़ीट किया।" (हमने आपको अपने घरवाले की तरह ट्रीट करा।)
2. "हाऊ डेअड़ यू काल मी अ बिहाड़ी ?" (How dare you call me a Bihari?)
3. "अड़े हम का बिहाड़ी हैं?
4. "फ्रैंकली डियड़, 'फक यू'"(Frankly dear, Fuck YOU!)

मेरे जवाब इस प्रकार थे:
1. भाई मैं तेरा घरवाला बन के क्या करूँगा?
2. अबे बिहारी को बिहारी नहीं तो क्या कश्मीरी बुलाऊंगा बे?
3. उम्म्मममम...... 'हाँ'
4. भाई तेरा हो गया हो तो अब मैं सो जाऊँ? तेरी जान कसम बहुत नींद आ रही है।

इसके बाद उसने फोन काट दिया।

सुबह सोहन का फोन आया। बिहारी भाई ने मुझे फोन करने के बाद उसे फोन करा था... सोहन के फोन से ये बात पक्की हो गयी कि रात को बिहारी भाई का फोन आया था, वर्ना मैं ये ही सोच रहा था कि रात वाला फोन कॉल सच में था या एक सपना था?

चाहे जो भी हो, मुझे अब वहाँ न जाने का बहाना ढूँढने की ज़रुरत नहीं थी। थोड़ी देर बाद सँजय सर का फोन आया... और मैं वापस से फैशन शूट से कॉमिक बुक राईटर बन चुका था।

टिप्पणियाँ

  1. भूलकर भी कभी किसी के लिए प्रदेशवाचक या जातिवाचक शब्‍दों का प्रयोग मत करो। ना जाने कब उड़ता तीर जा लगे। बड़ी मुसीबत हो जाती है। लेकिन प्रसंग बढिया था।

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