लॉण्डे - लपाटे - 05

सुबह के 9:43 बजे

-- "क्या गड़बड़ है?", अचानक से जिमी के पापा जी अँदर आ जाते हैं। अब जिमी और स्वप्निल से सीधे और शरीफ बच्चे आप को इस पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे। जिमी के पापा के सामने 'सत्यवादी हरीश्चन्द्र' और 'गौतम बुद्ध' भी जिमी-स्वप्निल के आगे छोले भटूरे बेचते नज़र आते हैं।



-- "अरे अँकल जी नमस्ते।", कहते हुए स्वप्निल ने जिमी के पापा के पैरों में छलाँग लगायी। स्वप्निल का मानना है कि किसी भी हिनदुस्तानी माँ-बाप को पटाने का सबसे बड़ा ब्रह्मास्त्र यही है कि उनके पैरों की तरफ ऐसे छलाँग मारो जैसे क्रिकेट में रन लेने के लिये भागते हुए बैट्समैन रन आउट से बचने के लिये क्रीज़ की तरफ मारते हैं। और मज़े की बात ये है कि साली ये ट्रिक हमेशा काम करती है। और वो भी... दुनिया के हर हिन्दुस्तानी माँ-बाप पर।

चरण-स्पर्श का सैशन खत्म होते ही जिमी के पापा ने अपना सवाल दोहराया, "क्या गड़बड़ की बात कर रहे थे तुम दोनों?"
स्वप्निल: "वो गर्मी बोहोत ज़्यादा हो गयी है न अँकल जी अब।"

-- "क्या?", जिमी के पापा जी ने अजीब सा जवाब सुनकर मुँह बनाते हुए जिमी की तरफ देखा, जिमी को खुद नहीं पता था कि स्वप्निल की बात का क्या मतलब था सो उसने सकपका कर स्वप्निल की तरफ देखा।
पर हमारा स्वप्निल भी बहानेबाज़ी, चापलूसी, बात बदलने और मक्कारी में किसी से कम नहीं खाता, अरे इसकी मक्कारी के बारे में तो यहाँ तक कहा जाता है कि अगर महाभारत में कौरवों के पास स्वप्निल होता तो पाण्डव कौरवों से कुछ माँगते ही नहीं, बल्कि खुशी खुशी कौरवों की शरण में रहते हुए उनके गुण गाते।

तो साला यहाँ भी शुरू हो गया, "अरे अँकल जी वो आजकल गर्मी बोहोत पड़ रही है ना... तो... तो ना... वो ...वो कॉलेज में ना ... क्लासेस आजकल फील्ड में पेड़ के नीचे कराने की बात करने लगे हैं, हाँ।"

जिमी ने अपने बाल पकड़ लिये।

जिमी के पापा: "पर मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं सुना।", भैया आखिर जिमी के पापा कॉलेज के भूगोल विभाग के हैड और हॉस्टल के वॉर्डन हैं।

और ये बात स्वप्निल को अभी अभी याद आयी। तो तुरँत दाँव पलटा गया, "अरे अँकल अभी तो सिर्फ मज़ाक मज़ाक में बातें हो रही हैं.. कल पाँडे सर क्लास में कह रहे थे हम सब से... मज़ाक में... बता जिमी... बताता क्यों नहीं है भाई?"
जिमी: "हाँ ... वो... हाँ हाँ... कह रहे थे।
"

स्वप्निल: "अब अँकल आप ही बताओ, कॉलेज की क्लासेस, और वो भी पेड़ के नीचे? कोई तरीका है ये भला?", अब स्वप्निल का इँजन गर्म हो चुका था।  --"बता जिमी, बता भाई।"

जिमी: "हाँ ...वो ... वो तो है.."

स्वप्निल: "अब अँकल जी आप ही बताओ कॉलेज है कोई स्कूल थोड़े ही है जो आम, नीम या पीपल के पेड़ के नीचे क्लासेस चला दीं... कोई तरीका थोड़ी है ये भला। वैसे ही काफी इज्ज़त है इस कॉलेज की जो और ऐसे काम कर रहे हैं ये।"

जिमी के पापा ये सुनकर सोचने लगे।  --"हम्म्म! पर जिमी तो कह रहा था कि तू कई दिनों से कॉलेज ही नहीं आ रहा है।" हमारे अँकल जी भी कम नहीं है, भई आखिर 10 साल कोर्ट-कचहरी में जो बिताये हैं।
ये सुनकर स्वप्निल ने जिमी को ऐसे देखा जैसे स्वप्निल ने जिमी को बिज़नेस में धोखा या गबन करते हुए रँगे हाथों पकड़ लिया हो।  --"जिमी?"

जिमी अभी भी अपने बाल पकड़े हुए है।  अब जिमी के पापा जी और स्वप्निल दोनों ही जिमी की तरफ देख रहे है और जिमी सोच रहा है कि क्या बोले कि अचानक चाय भगौने से उफन कर बाहर आने लगती है।

जिमी: "ओफ्फो.. अये हये... निकल गयी॥"

स्वप्निल भी तुरँत गैस की तरफ लपका, वैसे तो साला चौका चूल्हे के आस पास फटकने को भी तैयार नहीं होता है पर आज ऐसे भागा जैसे चाय नहीं लॉटरी निकली हो।

जिमी ने चाय छानी, अब चाय सिर्फ 2 जनों के लिये और आदमी 3। स्वप्निल चाहें कितना भी मक्कार हो पर खाने पीने में यारी दोस्ती नहीं रखता सो अपनी चाय पकड़ कर चुपचाप कोने मैं बैठकर सुड़कने लगा। जिमी भी इस मामले कुछ अलग नहीं है सो वो भी बेशर्मों की तरह अपनी चाय पकड़ कर बैठ गया। अब दोनों चाय पकड़े-उकड़ूँ बैठे एक दूसरे को देख रहे हैं।
जिमी के पापा जि ये सब देख रहे हैं, वो धीमे से उठे, अपना बैग उठा कर खिड़की के पास रखा और बोले, "चलो मैं कॉलेज जा रहा हूँ, पता करता हूँ कि ये क्लासेस का क्या चक्कर है। तुम दोनों से मैं बाद में बात करता हूँ।"

जिमी के पापा जी ये बोल कर बाहर निकल गये। जिमी और स्वप्निल उन्हें गेट से बाहर जाते हुए देखते रहे।
और उनके बाहर जाते ही:

जिमी: "हरामखोर, क्या बोलता है कभी कुछ सोचता भी है? हमेशा मरवाता है साले।"

स्वप्निल: "हाँ सोचता तो बस तेरी तरह 'हाँ... वो... वो... हाँ' करके हकलाता रहता, सालों मेरा बोलना नहीं पसँद तो खुद बोला करो। ज़्यादा ड्रामे मत दिखाओ मुझे... मुझे वैसे ही बोहोत टेन्शन हैं।"

ये कह कर जिमी ने चाय से भरा स्टील का गिलास दीवार के सहारे रख दिया।
-- "अब पीता क्यों ना है चाय?", जिमी भन्नाया।
-- "साले पता तो है तुझे कि मैं चाय ठण्डी करके पीता हूँ, देख मुँह जल गया गर्म चाय से।", स्वप्निल ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर खुजायी।

जिमी: "तो साले किसी ने कही तुझसे कि गर्म चाय पी? क्यों पी?"
स्वप्निल: "साले नहीं पीता तो अँकल जी को न देनी पड़ती?"
जिमी: "हरामखोर, मेरे पापा को चाय भी न दे सकता तू, वैसे तो बड़े पैर छूता है, पर चाय ना दे सकता?"
स्वप्निल: "तूने कितनी दे दी? जो ज़्यादा बोल रिया है? और हाँ, साले तू अँकल जी को मेरी कॉलेज की अटैण्डैन्स के बारे में भी बताता है?"
जिमी: "तो तू आता ही कब है? ना तो स्कूल आता था, ना कॉलेज आता है, मुझे तो लगता है कि नौकरी लगने के बाद तू साले औफिस भी नहीं जाया करेगा।"
स्वप्निल: "अबे ओ, ज़्यादा ना चौधरी मत बन। मैं कॉलेज और स्कूल से इसलिये बाहर रहता हूं क्योंकि मैं इनकी गलत पॉलिसी और मनमानी का बॉयकॉट करता हूँ।"
जिमी: "जिस दिन अदिती को कॉलेज आना होता है उस दिन तो तेरा बॉयकॉट बँद हो जाता है।"
स्वप्निल: "तुम साले समझोगे ही नहीं कभी, अब उसके कॉलेज आने के दिन और मेरे टाइम टेबल के दिन एक ही हैं तो मैं क्या करूँ? और तू अदिती को बीच में मत ला... मैं उससे प्यार करता हूँ।"
जिमी: "हाँ हाँ बड़ा प्यार करता है उसे, अपनी चाय दे देगा उसे? उसे बतायेगा कि वीडियो गेम वाले की कितनी उधारी है तुझपर? उसे बतायेगा कि कैमिस्ट्री का एक भी प्रैक्टिकल नहीं आता है तुझे साले... बतायेगा? बोल.."
स्वप्निल ये सब सुनकर सोचने लग गया। -- "मेरी तो साली ज़िँदगी ही परेशानियों से भरी पड़ी है, पर मैं अदिती को इससे परेशान नहीं करना चाहता।"

-- "चाय पी ले, ठण्डी हो चुकी काफी। ... परेशानी... हुँह।", जिमी ने मुँह बनाते हुए कहा।

स्वप्निल ने दरवाजे की तरफ देखते हुए चाय उठायी और सोचते हुए बोला, "हाँ यार, सही कह रहा है तू, अब मुझे बदलना पड़ेगा। ये परेशानियाँ तो साली जिन्दगी भर लगी रहेंगी, तो मैं क्या इनसे ऐसे ही भागता रहूँगा। मुझे ताकतवर बनना पड़ेगा, आज के बाद से ये सारी उल्टी सीधी आदतें खत्म... अब एक नया.. स्वप्निल...... आऽऽऽऽहहहह... साले चाय अभी भी गर्म है।"
-- "पानी ना मिला दूँ इसमें?", जिमी ने ताना मारा।
स्वप्निल मुँह बना कर चुपचाप दरवाजे से बाहर देखने लगा। दोनों ने अपनी चाय खत्म की और बाहर घूमने निकल लिये।

[सुबह 9:56 बजे]

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें