*मेरा शहर मर गया है*

आज कुछ खोया-खोया सा लग रहा है,
चल रहा हूँ मैं पर... सब रुका रुका सा लग रहा है॥

बहुत सोचा-समझा... पर बाद में समझ आया...
-- कि आज मेरा शहर मर गया है॥

वही रस्ते हैं, वही गलियाँ हैं।
वही लोग हैं, वही सोच है।
पर आज... न कोई याद है, न कोई ख़याल है॥

बस चला जा रहा हूँ, जैसे इन रस्तों पर,
जैसे कि कोई रिश्ता ही न हो इन सब से।
जैसे कि भूल गया कि.. यही वो रस्ते हैं.. वही गलियाँ हैं,
जहाँ मैंने चलना सीखा,
जहाँ अपने यारों के साथ खेला।
यहाँ गिरा था... वहाँ उठा था।
यहीं संभला था॥

पर आज सबकुछ चुपचाप सा है।
ये सड़क चुप है, ये दीवारें चुप हैं।
ये गलियाँ भी अब कुछ बोलती नहीं हैं..
... हाँ बस ये आसमाँ घूरता है मुझे॥

बहुत सोचा-समझा... पर बाद में समझ आया...
-- कि आज मेरा शहर मर गया है॥

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