लॉण्डे - लपाटे - 03

03 -- सुबह के 08:59 बजे!

जिमी अब अपने कमरे में बैठा हुआ अपने छोटे से गैस सिलैण्डर पर बर्तन रखकर उसमें चाय बनाने की तैयारी कर रहा है।
चाय तो वो बना रहा है, पर उसका ध्यान अभी भी पड़ोसन की खिड़की पर ही लगा हुआ है। वो उबलते हुए पानी में चाय और चीनी झोंक रहा है और हर झोंके के साथ वो पड़ोसन की माँ को कोस रहा है। बताओ इतने अच्छे मूड की वाट लगा दी सुबह-ही-सुबह, हाँ नहीं तो!




जिमी अपनी गैस पर बैठा हुआ चाय बनती हुई देख रहा था... पर उसका ध्यान कहीं और ही है। अचानक उसे अपने पीछे किसी परछाईं का आभास होता है। पीछे मुड़कर देखने पर जिमी ऐसे उछल कर खड़ा हो गया जैसे गैस की आग उसके नीचे लग गयी हो। दरवाजे पर उसकी पड़ोसन खडी है।

अब मुझे ये बताना है कि इन दोनों ने क्या कपड़े पहन रखे हैं:
हमारा जिमी सोकर उठने के बाद से ही ऐसा है, इसीलिये उसने अभी एक पजामा और उसके ऊपर सफेद आधी बाजू की बनियान पहन रखी है, जिसके ऊपर लिखा हुआ है, 'डिक्सी'।

उसकी पड़ोसन भी कोई बन-ठन कर नहीं आयी है, उसने एक बेकार सा सलवार सूट पहन रखा है जिसका कि दुपट्टा वो अपने घर पर छोड़ कर आयी है... वो जब भी जिमी के सामने आती है तो दुपट्टा घर पर अलमारी में रख कर आती है।
सो, हमारा जिमी उसके सशवागत के लिये अपने गँदे कपड़े, किताबें और झूठे बर्तन उठाकर समेटने लगा और उसकी पड़ोसन मुस्कुराती हुई कमरे के अँदर आ गयी।

- "तू ना मिली दिल पढ़ाई में लगा नहीं, एक भी दिन बिन तेरे collegeगया नहीं, दिन हैं पढ़ने लिखने के तुम आहें भर रहे, feesमाँ बाप की बर्बाद कर रहे, in the morning, by the sea....", रेडियो पर गाना अभी भी बज रहा था।
पड़ोसन: "ये कौन सी फ़िल्म का गाना है. जिमी?"
जिमी: "पता ना।"

- "तो ये था सुरेन्द्र साथी द्वारा लिखा हुआ गीत 'तू ना मिली दिल पढ़ाई में' फिल्म 'जान तेरे नाम' से ।" , रेडियो भी अच्छी चीज़ है, खुद ही सब कुछ बोल देता है। जिमी ने इसके बाद रेडियो बँद कर दिया।
- "तो तुम आज भी कॉलेज नहीं गये? ऐसा क्यों करते हो?" , पड़ोसन पूछ तो ऐसे रही है जैसे कि उसे पता नहीं कि जिमी क्यों कॉलेज नहीं गया।

जिमी: "पता ना... आज तबियत ठीक न लग री।"
पड़ोसन: "अरे! क्या हुआ? बुखार तो नहीं है न.. लाओ मुझे दिखाओ।" , वैसे तो बुखार का पता लगाने के लिये ज़्यादातर लोग दूसरों के माथे या हाथ को छूते हैं, पर जिमी की पड़ोसन जिमी के गाल टटोल रही है।
जिमी: "पता ना... रात को नीं भी ना आयी..."
पड़ोसन "तुम ना... ऐसा मत करा करो। कितनी बार कहा है कि रात को जगा मत करो। मुझे तुम्हारे रेडियो की आवाज आती रहती है तो मैं समझ जाती हूँ कि तुम सो नहीं रहे हो। क्यों सही है ना?"
जिमी: "तुम भी रात को जगती हो?"
पड़ोसन: "मैडी सही कहता है, तुम सवाल के बदले में सवाल पूछते हो, शायद इसीलिये ऐग्ज़ाम में नँबर कम हो जाते हैं तुम्हारे।"

अब पड़ोसन जिमी के फोल्डिंग पलँग पर बैठ गयी।

- "तो बताओ, तुम्हें नींद क्यों नहीं आती है? ऐसा क्या सोचते हो रात भर?" , आज पड़ोसन कुछ अजीब ही मूड में थी और जिमी को समझ ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है।
जिमी: "पता ना... "
पड़ोसन: "अच्छा ये बताओ, तुम सोते कैसे हो? मतलब बिस्तर पर लेटते कैसे हो?"
जिमी: "??" , जिमी का फ्यूज़ उड़ चुका था।
पड़ोसन: "अरे मेरा मतलब किस तरह से सोते हो? देखो मैं दिखाती हूँ कि मैं कैसे सोती हूँ..." , और ये कहते हुए पड़ोसन बिस्तर पर इतने जोर से गिरी कि बेचारा फोल्डिंग एक जोर की आवाज के साथ 1 फुट दूर खिसक गया।

अब जिमी की पड़ोसन बड़े ही बेतरतीब ढँग से बिस्तर पर पड़ी हुयी थी, उसकी आँखें बँद तीं और उसके चेहरे पर वही अजीब सी मुसकुराहट थी जो कि कोई अच्छा सपना देखने पर किसी के चेहरे पर आती है।

जिमी बिना पलक झपकाये उसे देखे जा रहा था और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है, और ऊपर से फोल्डिंग पर पड़ी पड़ोसन उसके मन में अजीब से हालात पैदा कर रही थी। दुनिया का हर लड़का समझ सकता है कि जिमी के लिये वो अत्याधिक कठिन घड़ी थी।

- "जिमी!" , पड़ोसन ने आँखें बँद करे हुए ही जिमी को धीमे से पुकारा और जिमी किसी बिल्ली की तरह से चुपचाप पड़ोसन के सिरहाने घुटने के बाल जाकर बैठ गया।

- "मेरे सिर में दर्द हो रहा है.. थोड़ा दबा दोगे?" , पड़ोसन ने बड़े ही धीमे से बोला। जिमी का बाँया हाथ बड़े ही धीमे से पड़ोसन के माथे पर पहुँचा... और जैसे ही उसने उसे छुआ, एक बार को जिमी ने हाथ ऊपर उठा लिया क्योंकि उसका माथा काफी गरम हो रहा था।

- "तुम्हें बुखार है क्या?" , जिमी ने पूछा।
- "तुम्हीं देख लो" , पड़ोसन अभी भी आँखें बँद करके बोल रही थी। और ये कहने के साथ ही उसने जिमी का हाथ अपनी कलाई पर रख दिया।।उसकी कलाई ठण्डी थी।
- "तुम्हारा हाथ तो ठण्डा है।" , जिमी बोला।

जिमी का हाथ वापस अपने आप उसके माथे पर पहुँच गया। वो अभी भी गरम था। पड़ोसन ने अचानक अपना चेहरा कुछ इस तरह घुमाया कि जिमी का हाथ उसके माथे से फिसल कर उसके गाल पर सट गया।
उसका गाल भी उसके माथे की ही तरह गर्म था। पर अब जिमी को फर्क नहीं पड़ रहा था।
कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा था। जिमी का दूसरा हाथ अपने आप पड़ोसन के बालों पर पहुँच गया।

- "अहम अहम।" , अचानक किसी के गला साफ करने की आवाज दरवाजे से आयी।

जिमी और पड़ोसन ऐसे सकपकाकर उछले जैसे पता नहीं क्या हो गया हो। दोनों ने दरवाजे की तरफ देखा, तो वहाँ स्वप्निल खड़ा हुआ दोनो को अजीब तरह से घूर रहा था। पड़ोसन ने उसे देख कर गँदा सा मुँह बनाया और किसी फुर्तीली बिल्ली की तरह तेजी से कमरे से बाहर निकल गयी। स्वप्निल ने भी जाते हुए एक गँदी सी नजर से उसे देखा, दोनों की आँखें एक दूसरे से टकरायीं। दोनों एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे कुत्ता और बिल्ली।
[सुबह - 09:11]

क्रमशः

टिप्पणियाँ